मेरे काव्य संग्रह
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Tuesday, February 19, 2013
सरसों
होड़ लेते
धरा खिले
सरसों के पीले फूल से
नभ के
टिमटिमाते असंख्य
तारे
क्या
ग्राम्य-बाला की
कुँआरी हथेलियों पर
लगा पाएंगे
हल्दी
?
वो आकाश-कुसुम,
कब
धरती के हो सके हैं
मेहनतकश कृषक-बाला के
हाथ
सरसों ही करेगी
पीले।
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