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Sunday, September 2, 2012

रिश्‍तों का सवाल



उब लगती है जब भी रिश्‍तों का सवाल आता है।।
सुन्‍न हो गया हृदय न इसको अब जलाल आता है।

होम कर दी खुशनुमा जिन्‍दगी जिनकी मिजाजपुरसी में,
हमीं पर तोहमत देते हैं क्‍यों ? सिर्फ यह ख्‍याल आता है।

शिराओं में दौड़ता न अब खूं, यारों जिस्‍म अब फ्रिज बन गया,
दिखता हयादार न अब, कहां खूं में उबाल आता है।

खड़ा गहरी घाटियों में सुना रहा पत्‍थरों को गजल,
दोस्‍ती का कहीं से न अब कोई रूमाल आता है।

हम जिन्‍हें समझे थे गुलाब, वे कड़वे कनेर निकले,
बबूलों में कमी क्‍या ‘’रघुनाथ’’ यों रसाल आता है!