उब लगती है जब भी
रिश्तों का सवाल आता है।।
सुन्न हो गया हृदय
न इसको अब जलाल आता है।
होम कर दी खुशनुमा
जिन्दगी जिनकी मिजाजपुरसी में,
हमीं पर तोहमत देते
हैं क्यों ? सिर्फ यह ख्याल आता
है।
शिराओं में दौड़ता न
अब खूं, यारों जिस्म अब फ्रिज बन गया,
दिखता हयादार न अब,
कहां खूं में उबाल आता है।
खड़ा गहरी घाटियों
में सुना रहा पत्थरों को गजल,
दोस्ती का कहीं से
न अब कोई रूमाल आता है।
हम जिन्हें समझे थे
गुलाब, वे कड़वे कनेर निकले,
बबूलों में कमी क्या
‘’रघुनाथ’’ यों रसाल आता है!