रात भर दीप जलता
रहा।
अंधेरे से लड़ता
रहा।।
वृत्तियों के गहन
तिमिर में,
मृत्तिका-प्रकाश
पलता रहा।
चित्र लिखित
निहारिकाओं की-
पंखुडि़यों से नभ
सजता रहा।
कज़ली-निशा के अंक
में,
प्रणय का पुंज खिलता
रहा।
रूप यौवन के दर्पण
में,
सौ-सौ बार संवरता
रहा।
घर-द्वार दीपावलियों
से-
जगमग-जगमग करता रहा।
ज्योति के सुमन
झरते रहे
पुलक से मनुज पुलकता
रहा।
आंधियां सर पटकती
रही
भोर तक दीप जलता
रहा।
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