गर्मी से झुलसे
वन-पर्वत हुलसे
जल की लिए छागल
पहाड़ी के पार जो
दिखा बादल।
ग्रीष्म से तपते
द्रुम-लता
पात-पात का कर चुम्बन,
सूत कातती
तकली-सी नाचती बदली
लायी प्रणय का
निमंत्रण;
आया आषाढ़
नहाया पहाड़
भीज गया भीतर-बाहर
छुमकी जो बूंदी की
पायल।
अकेले में
बिजली की देह
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रकृति का समावेश रचना की सम्रद्धि है
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
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