खेतों-खलिहानों में
कड़ी धूप में
स्वेद बह रहा,
समता की पट्टी पर
मेहनत की कलमों से
लिखी जा रही
श्रम की गीता।
जन-जीवन की खुशहाली
फिर उतर रही
ले नई योजना
जीवन के
उजले यथार्थ पर।
और कहीं पर
सत्यका मोहन
वेणु लेर
मेड़ों पर गा रहा
गीत फसल के,
जिनको सुनकर
नाच रही
फसलों की राधा।
बासन्ती परिधान
पहनकर
मलयज बजा रहा है
ताली
माटी का
संगीत नया है।
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