बासन्ती
बयार की सरगम पर
नृत्य करती
पीली सरसों
शिशिर की
ओस-बूंदों का आसव पी
जवान होती
गेहूं की बालियों का
लहलाहता
दर्प।
यह सब
देखती है
खुली आंखों
सच होता
भोर के स्वप्न-सा
पाणत करती
श्रम-संवलाई मजूरन;
उसके कोकिल-कंठी
हलवाहे हर्ष-गीत
बुनते हैं
उसका
वर्तमान
भविष्य की तुलना में
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