मन-विहग
गाए,
यह
उड़-उड़ जाए,
गन्ध
जूड़े कसे, महके बयार के।
छू गए
कौना-आन्तर द्वार के।।
रंगों की
फुहार,
रंगों की
पुकार,
बरजे क्वांरी
याद को मन भार के।
कि आई यह
उमर, यौवन उभार के।।
बसन्ती
बोलियां,
फूल की
डोलियां,
फागुन-पाहुन
गाए गीत प्यार के।
शरद्-चिरिया
उड़ी, पांखें पसार के।।
पांव
लिपटे सपन,
नृत्य
करते मगन,
शाख-शाख
से
पिंकी-स्वर मनुहार के।
आए चढ़
कांधे, पवन कहार के।।
गौर
रसवन्ती,
दुल्हिन
जलवन्ती,
विरम रही
नयन, आंसू संभार के।
पिया न
आए यह, क्षण है श्रृंगार के।।
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क्या बात है जी....
ReplyDeleteकुँवर जी,