धरती पर बिछ गए हैं,
दूब के हरे गलीचे,
तन गए आकाश में,
बादलों के शामियाने।
पांव में
मौसम के बूंदों की
पायल बजती,
छांव में
प्रीत बावरी, कि
पिव-पिव पुकारती।
तन-मन-प्राण
हरियाये,
ये यादों के बागीचे,
धर गई पुरवाई इक गीला,
छन्द सिरहाने।
गांव में
यहां डाल पर गदराये कच्चे
आम,
नाँव में
अधरों की, आ बैठ
जाता एक नाम।
क्षुधा-सांवरी यह
भरे
कलश उरोजों पे
सींचे,
आसाढ़ क्वांरे घन,
छज्जों पर लगे उतराने।
------
बहुत उम्दा
ReplyDelete---शायद आपको पसंद आये---
Google Page Rank Update
ग़ज़लों के खिलते गुलाब
आपके ब्लॉग से CRTL+A करके सब स्लेक्ट और CRTL+C से कापी हो जाता है कृप्या तकनीक दृष्टा पर दी गयी नयी विधि प्रयोग करें।
ReplyDeletewaah bahut
ReplyDelete