तुम आओ
तो
दोनों सपनों को भाषा,
दोनों सपनों को भाषा,
दें अर्थ
नए-नए गीत को।
कंचनवर्णी
देह-गन्ध को,
अपनढ़े
पायल के छन्द को,
दें अर्थ
नए-नए गीत को।
अरुणाए अधरों
पर पनघट-
उमसती अनचाही
प्यास को,
पहना दें
स्वाति बुंदकियां हम-
चूंम लें
झुकते आकाश को,
तुम आओ
तो
लगे गाने
अधर की पिपासा,
दें मधुर
हास पर्ण-पीत को,
सावन हरा
गर्द-गुबार को,
दें नव
प्राण सूखी डाल को,
सावनी
फूलों की रीत को।
हरियायें
साध की फगुनियां,
पुलक उठे
केसर पराग से,
मुखर हो
गुन-गुन गुनगुनाए
बोझिल चुप्पियां
अनुराग से,
तुम आओ तो
गूंगी यह
अभिलाषा,
चाह रही
सौपान मीत को,
उन्माद
भर सजल श्रृंगार को
औ’ कजली
मेघ-मल्हार को,
कि चाहती
व्याहना प्रीत को।
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