शबे-महताब से रोशन
है उनका मुआ दिल।
बैठे हैं हम यों
करके चिराग अपने गुल।।
मुफलिसी में उगाते
हम आंसुओं की सफल,
सुरा-साकी से पुरनूर
है उनकी महफिल।
लहू से बनाया जिन्होंने
अपना राज-पथ,
चल के उस पे कुछ
सिरफिर पा गए मंजिल ।
हाल पे अवाम के उन्हें
नहीं कुछ मलाल,
रहबर हमारे वो पड़े
हैं हो के गाफिल ।
खुशबू न नूर गुलाबों
का अब अल्फाज में,
सियासत की मुलाजिम
हो गई कि आज गजल ।
बहारें कहां, चमन
कैसे कि कफस में बंद,
फूलों की बहारों को
रोता है बुलबुल ।
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