कहां ऋतु – मधुमास
रंभाते पशुओं का
सूखा यह गांव।
अंचरा न बांधे
गंध फगुना-चैत
दृष्टियों में चुभे,
भूख पेट खेत।
यहां – वहां बबूल
थामे खड़े शूल
दीखती न फगुनाएं नीम
की छांव।
कहां ग्राम- बाला
पागल प्राण करे,
कोकिला के गीत
कहां महुआ झरे।
हरियाये न बेंत
आंखों उड़े रेत
मेंहदी रचायी न धरती
के पांव।
झीलों के दर्पन
निहारती न प्रीत,
टूटा झरनों का
पनघटों का गीत।
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