बसंत की
पाती है
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दूर्वा
की स्लेट पर
फूल है
जैसे लिखे, अक्षर किसी नाम के।
नगर-द्वार,
जीवन में
फिर लौटी
है मिठास,
अधरों औ
आंखों से -
है छलकती
मधु-प्यास ।
टेसू के
लाल-लाल
रंग
बसनों में मुदित
कोयल के
बोलों पर, खुले अधर विराम के,
फूल है
जैसे लिखे, अक्षर किसी नाम के ।
गीतों के
पंख खुले
मकरन्दी
छांहों में,
उदास मन
झूलेगा
अमलतासी-बांहों
में ।
कण-कण हो
मुखरित सब-
नगर-गांव
नाच रहा
उमंग है
पांव में, आज बूढ़े ग्राम के ।
बसंत की पाती है दूर्वा की स्लेट पर
फूल है जैसे लिखे, अक्षर किसी नाम के।
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