तान दिया
पाल, बासंती-चुनरिया का।
खोल दिए वेणी-बन्ध
रस-क्यारियां भर दी गन्ध
मुकुलित
गुच्छों से झूल गए
मधुवासित-फूलों
के छन्द।
महका कौना-कौना, गांव-नगरिया का ।
तान दिया
पाल, बासंती-चुनरिया का ।।
दिग्-दिगन्त
अमलतासी धूप
नई सरसों
का मुखरित रूप
उगा है
मन-दर्पण के बीच
सखि,
कचंनवर्णी रूप अनूप ।
सरसा
रोम-रोम से, स्वर बांसुरिया का ।
तान दिया
पाल, बासंती-चुनरिया का ।।
थाप पड़ी
है फागुनी-चंग
कंठों
में गीतों की उमंग
रस-भीगी
उर्वश चूनर देह
हो गए एक
बासंती-रंग।
पनघट
ठलका रस, रसवंती गगरिया का,
आंचल-आंचल
भीगा हर गुजरिया का,
तान दिया
पाल, बासंती-चुनरिया का ।
तान दिया
पाल, बासंती चुनरिया का ।।
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