बैराता
जब
बौर आम
का,
होठों पर
उग आता कोई,
एक गीत
किसी के नाम का।
ओढ़
चुनरिया
बासंती
धूप,
बतियाती
पीली सरसों में
उभर आता
है तुम्हारा रूप।
खेल-मेढ़
का
मुखर
ग्राम का,
नाच-नाच फसलों
की राधा,
गाती गीत
अपने श्याम का।
काली
कोयल
कुहू-कुहूकती,
मन की
सूनी मुंडेर पर जब-
लगे दूर
कहीं तुम टेरती।
आठ याम का,
फूलों के केसर-पराग से
गंधायित उदास मन शाम का।
No comments:
Post a Comment