यह बदली
न जाने
कहां पी आई पगली।
ठहरते न
पांव कि शोर मचाए,
द्वार-खिड़कियों
पे थाप लगाए,
यह बदली
झूम-झूम
गाए कजली।
बरबस
गहती मुझको बांह में,
औ’’ भीगे
आंचल की छांह में,
यह बदली
जैसे कि
तार बुनती हो तकली।
होठों तक
आती मन की बातें,
दूब-सी
उग आई सौगातें,
यह पगली
भेद मन
के खोल गई बिजली।
यह बदली
न जाने कहां
पी आई पगली।
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