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Wednesday, August 1, 2012

यह बदली



यह बदली
न जाने कहां पी आई पगली।

ठहरते न पांव कि शोर मचाए,
द्वार-खिड़कियों पे थाप लगाए,
यह बदली
झूम-झूम गाए कजली।

बरबस गहती मुझको बांह में,
औ’’ भीगे आंचल की छांह में,
यह बदली
जैसे कि तार बुनती हो तकली।

होठों तक आती मन की बातें,
दूब-सी उग आई सौगातें,
यह पगली
भेद मन के खोल गई बिजली।

यह बदली
न जाने कहां पी आई पगली।
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