लहका
लहका
महका
महका
बगिया का
यौवन गदराया।
तितलियों
की रंगीन घातें
फूलों से
भंवरों की बातें
भीगा-भीगा
मौसम बहका
बहका
बहका
उन्माद
भरा फागुन आया,
बगिया का
यौवन गदराया।
बैठी थी
चुप-सी जो परसों,
चढ़
बतियाती पीली सरसों
शहतूती
शाखों से छलका
छलका
छलका
मधुमास
लिए मद बौराया,
बगिया का
यौवन गदराया।
बिसरे-बिसरे
से छन फूले
पत्तों
की औंक में प्रन फूले
सुधियों
का कगन खनका
खनका
खनका
मादल का
स्वर भर लहराया,
बगिया का
यौवन गदराया।
कि, शब्दों
में अर्थों के फूल
गमके
प्राण, कस्तरी धूल
ऐसे में
मन-दर्पण चटका
चटका
चटका
रोम-रोम
मधु-मत्त-सरसाया,
बगिया का
यौवन गदराया।
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