ओ आकाशी बादल
सावन बीता जाए,
चुप बूंदी की पालय
!
छिपे कहां विश्वासी,
मरू –धरती है प्यासी,
खिले क्यों न श्याम-घटा
के
अधर-विम्ब पाटल
!
हरियाले सोमवार
सूखे तीज-त्यौहार,
हाथों राची न
मेंहदी,
अँजा न नयन काजल !
डालों डले न झूले
जीवन रंग सब भूले,
प्यारे ढोर-ढंगर
भूले कहां जल-छागल
?
ओ आकाशी बादल
सावन बीता जाए,
चुप बूंदी की पालय !
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