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Tuesday, August 14, 2012

सावन बीता जाए

ओ आकाशी बादल
सावन बीता जाए,
चुप बूंदी की पालय !

छिपे कहां विश्‍वासी,
मरू –धरती है प्‍यासी,
खिले क्‍यों न श्‍याम-घटा के
अधर-विम्‍ब पाटल !

हरियाले सोमवार
सूखे तीज-त्‍यौहार,
हाथों राची न मेंहदी,
अँजा न नयन काजल  !

डालों डले न झूले
जीवन रंग सब भूले,
प्‍यारे ढोर-ढंगर
भूले कहां जल-छागल ?

ओ आकाशी बादल
सावन बीता जाए,
चुप बूंदी की पालय !
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