सावन बरसे, भादों बरसे।
तुम बिन सजना, नयना तरसे।।
झिरमिर-झिरमिर
यह चौमासा
मन का पपीहा
फिर भी प्यासा।
विराजे क्यों परदेशी पिया,
यौवन का यह बिरवा झुलसे।
तुम बिन सजना, नयना तरसे।।
चपल चंचला,
दप-दप दमके,
बूंदें आंगन
छमछम छुमके।
रोम-रोम का बदला मौसम,
भीगी परवा-फहार परसे,
तुम बिन सजना, नयना तरसे।।
हरियाले हैं ये सोमवार,
पिया मिलन के
तीज त्यौहार।
कजरी गाती, मेघ मल्हार,
गांव-गैल यह बरखा हुलसे।
तुम बिन सजना, नयना तरसे।।
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