रंगराई पहाडि़यों की
अन्य गुफाओं से
उतर शरद् किरण
धरे गोरे चरण।
उतर रहे हंस
लिपे पुते आंगनों
में,
बंध रहे अक्षर
अर्थ के सम्मोहनों
में,
तन-मन-प्राण मुदित पावन ऋचाओं से
करता ज्यों मंत्रोच्चारण
मुखर रेत करण-कण।
बांसुरी प्रतीक्षा
रूप-रंग-रस-गन्ध धुरली,
खग-वनिताएं
खेल पंख उड़ चली,
पुर गया चौक
आढ़ी-तिरछी रेखओं से,
रंगों का अभिसिंचन
छवियों का आमंन्त्रण
उतर शरद् किरण
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteजय हिंद!