रूप का दीप जला
प्राण ! तुमने घर आंगन उजियार दिया।
आई नूपुर बांध पांव में,
ज्यों बिजली प्रतीक्षित गांव में,
जूड़े गूंथ उजले -
फूल कांस के, सुधियों ने श्रृंगार किया ।
घर आया ज्यों क्वार का धान,
ऐसी तुम्हारी मुस्कान,
दुहरा नयन- काजल,
आधी रात, दर्पण ने मनुहार दिया ।
उजलाई गहरी छायाएं,
टूटी ताड़ सी प्रतीक्षाएं,
सूर्यमुखी हंसी ने,
धुंधली रेखाओं को आकार दिया।
रूप का दीप जला
प्राण ! तुम ने घर-आंगन उजियार दिया ।
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