बिखर या
कजरा,
लुभा गए
बदरा।
छत पर
खड़ी निखारती रही डगरिया,
तुम न आए
पिया, थक गई नजरिया ।
बहा गए
बदरा,
पलकों का
कजरा ।
सकुच
सकुच खोली गीली कंचुकिया,
इतने में
मुसकाई शोख बिजुरिया ।
दहक गए
बदरा,
अंग अंग
पियरा ।
कि बैरिन
बयार खुड़काए किवडि़या,
आहट पर
उचट उचट जाए निंदिया ।
पहिनाए
बदरा,
मोती का
गजरा ।
डसती
एकाकी सावन की रतियां,
आओ बतियायें
हम मन की बतियां ।
बुला गए बदरा ।
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