तुम मिले
ऐसे
द्वार पर
जैसे कि वीरान हवेली के,
खिल गए
हों सुमन महकती चमेली के ।
मिल गई
गन्ध जैसे भटकते पवन को,
देव
दर्शन मिला हो कि मेरे नयन को।
तुम मिले
ऐसे
हो गई एक
देह चूनर रंग बसंती,
रच गए
गहरे रंग प्रणय हथेली के ।
आकाश को
मिल गई पूनम क्वार की
लगी बजने
वीणा मधुर मनुहार की ।
तुम मिले
ऐसे
छन्द से
उतरे कि गीत पूर्ण हो गया,
खुल गए
अर्थ अबूझ तरूण पहेली के ।
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