जैसे
तुम्हारी,
श्यामल
अलकों ने,
तान दिया
पाल, छत पर आकाश के।
झर रहे
कि शब्द
बूंद-बूंद
गीत के,
उभर रहे
अर्थ
दूर्वा
से प्रीत के,
शरमीली
नत श्याम-
नील
पलकों में,
झूल रहे
प्रतिबिंब, आकुल प्यास के ।
फूल रही
कि
माटी में
साधनाएं,
नाचते
मोरों-सी
ठुमकें
कामनाएं,
जुड़ रहे
सन्दर्भ
कि नभ से धरा के
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