क्यों
रूक-रूक जाती है मीठी बात गले तक आ-आ कर,
नयन परस्पर
बोला करते, अधर मौन क्यों रहते है ?
उषा-सुकन
सी मुस्कानें होठों पर नचती आती है,
लाज
गुलाबी पंखुडि़यों सी, पलकें झपक क्यों जाती है ?
पीड़ा का
क्यों भार उछलते उर क्यों स्पन्दन सहते है ?
नयन परस्पर
बोला करते, अधर मौन क्यों रहते हैं ?
तुम्हीं, सब कहीं व्यक्त दृगों में, अपना रूप बसाकर,
प्यास
बढ़ाते जाते जब तब, स्वप्नों में आ-आ कर,
स्वप्निल-उर्मिल
प्रणय संदेसे, तट दूरी से कहते हैं,
नयन परस्पर
बोला करते, अधर मौन क्यों रहते हैं ?
मिलता
मधुप कली से गा-गा, चूम-चूम रस लेता है,
जलती
दीप-शिखा में जल-जल, प्राण पतंगा देता है,
दो
बूंद-बूंद बन हम प्रीत लहर पर, दूर-दूर क्यों बहते हैं ?
नयन परस्पर
बोला करते, अधर मौन क्यों रहते हैं ?
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बहुत बहुत सुन्दर रचना:-)
ReplyDeleteहमने आपकी पोस्ट का एक कतरा सहेज़ लिया है , आज ब्लॉग बुलेटिन के पन्ने को खूबसूरत बनाने के लिए । देखिए कि मित्र ब्लॉगरों की पोस्टों के बीच हमने उसे पिरो कर अन्य पाठकों के लिए उपलब्ध कराने का प्रयास किया है । आप टिप्पणी को क्लिक करके हमारे प्रयास को देखने के अलावा , अन्य खूबसूरत पोस्टों के सूत्र तक पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और आभार
ReplyDeleteनयन परस्पर बोला करते .. अधर मौन ही रहते हैं ..
ReplyDeleteबहुत खूब प्रस्तुति !!