शरद् निशा में, प्राण ! तुम्हारी मधुर याद आती है।
उतर पड़ी भू पर नभ से, चांदी सी धुली चांदनी,
झिलमिल-झिलमिल भर मांग सितारों से कितनी मनहर,
सौरभ मन्द पवन बह जाता, कह कर बात तुम्हारी,
लाज-गुलाबी सपने हँस-हँस जाते कम्पित पलकों पर,
दिशि-दिशि से उठती विरह गीत की स्वर लहरी,
मेरे कानों पर खोई-खोई सी मंडराती है।
मृदु-स्वप्निल प्रणय-मिलन की सुधि आ जाती है।
शरद् निशा में, प्राण ! तुम्हारी मधुर याद आती है।
आया बसंत पर कोकिल कूक नहीं पाई,
सूने-सूने जीवन पर रोते हैं तारे,
टलती जाती क्यों घड़ियां या मधुर मिलन की,
तुम मिलो कि मेरा तन-मन प्राण पुकारे।
रूप संवारे किस यौवन-दर्पण में उर की प्रीति तरुण,
शशि की किरणों पर परछाई अकुलाती है,
मन की व्याकुलता नयनों में घिर आती है,
शरद् निशा में, प्राण ! तुम्हारी मधुर याद आती है।
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