दीप जलाए
सुधियों के द्वार खड़ी अकेली तुम-सी भोली
यह चम्बई
सांझ तुम्हारे लहराते श्यामल कुन्तल-सी।।
क्षितिज
अंगूरी-पल्लव थहिकत दिवस किरणों ने चूम लिए,
सौरभ के
पर चंचल तुम्हारी श्वासों की केसर पिए।
अधर चूम
कर मेरे उर तक रेख खींच दी चंचल-सी।
यह चम्बई
सांझ तुम्हारे लहराते श्यामल कुन्तल-सी।।
रेशमी
चुनरी ओढ़े रस-सिन्धु स्नात यह धवल रात,
उन्मत्त
रजनी की गोद में पुलक से आपूरित पात-पात।
यह
नव-नील कोमल छांह तुम्हारेमुख के सुषमा-जल सी।
यह चम्बई
सांझ तुम्हारे लहराते श्यामल कुन्तल-सी।।
आमन्त्रण
देता ठहर चन्दा को लहरों का मौन संगीत,
हर
रोम-रोम में प्यार पुलक, अधरों पर स्पन्दित मधुर गीत।
दृष्टि-दूतिका
उड़ी स्मृतियों के पार तुम्हारे अंचल सी।
यह चम्बई
सांझ तुम्हारे लहराते श्यामल कुन्तल-सी।।
मिलन-द्वार
प्राणों का सौरभ ले श्वासों का कपूर जल रहा,
तुम्हारी
अर्चना में निरन्तर गीत का चांद गल रहा।
मौम-तन
में पल रही रह-रह, फिर पिपासा ज्योति जल-सी।
यह चम्बई
सांझ तुम्हारे लहराते श्यामल कुन्तल-सी।।
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बहुत सुंदर शब्दों का संयोजन और सुंदर रचना, बधाई
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