मेरी आस्था का आलोक
सूर्य में
प्रतिबिम्बित है,
चांदी की तरल गंगा
है
जो अपने अस्तित्व
जल-तरंगाकुल समुद्र में
विलीन होने जा रही
है।
मेरी आशा
अनन्त आकाश में
उड़ान भरने वाली स्वच्छन्द
चिडि़या है,
जो तिजोरियों के
पिंजरे में
कभी बन्द नहीं होगी।
शोषण के मखमली
मुलायम गदृों पर
लेटे हुए
क्रीड़ा-विलास दम्पत्ती
नहीं है
जिसे श्रम-शिव का
तृतीय नेत्र खुलने का डर हो,
वीणावादिनी के
कोमल कोरों की
अंगुलियों से
बिखेरने वाली तारों
की स्वर-लहरी है,
उजड़े हुए
हृदयोद्यान में
बसन्त की पहली लहर
है,
तप्त-वसुधा पर
पावस की पहली बूंद
है,
मिलों के धुओं में
घुटने वाली
अनन्त आत्माओं की
हथेलियों में
खिंची हुई
क्रांति-रेखा है।
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