बन्धु रे !
कविता
रोटी नहीं जो
भूख से बिलखते
लोगों का पेट भर
सके।
जो आधे पेट खट-खट कर
नंगे बदन, पसीने से
लथपथ
खून सींच-सींच कर
फसल उगाते हैं।
कविता तो उन
मेहनतकश लोगों का
गीत है,
प्रेरणा है,
आगे बढ़ने की शक्ति
है
जिसकी लय पर
मैं, तुम, वह
फसल की रक्षा के लिए
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