प्रतीक्षारत
मेरी आंखें
निहारती रहीं
तुम्हारे होंठो की ड़योढी के भीतर
कुलबुलाती मुस्कान को
जिसे पाकर
मेरा
आवारा प्रश्न
एक सही उत्तर लिख देता,
मगर-
तुमने
ओढ लिया मुंह तक अंधेरा
दफना कर उजेरा
तो फिर
मेरे लिए
मात्र
मूंग-से बिखरे
संदर्भों को चुनने का
विकल्प ।
मेरी आंखें
निहारती रहीं
तुम्हारे होंठो की ड़योढी के भीतर
कुलबुलाती मुस्कान को
जिसे पाकर
मेरा
आवारा प्रश्न
एक सही उत्तर लिख देता,
मगर-
तुमने
ओढ लिया मुंह तक अंधेरा
दफना कर उजेरा
तो फिर
मेरे लिए
मात्र
मूंग-से बिखरे
संदर्भों को चुनने का
विकल्प ।
बहुत खूबसूरत प्रतीक्षारत आँखें... सुन्दर रचना... आभार
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteआपका पृष्ठ देखा बहुत ही सुन्दर लगा। आपके द्वारा लिखित अपने मन की बात को नया आयाम देने के लिए हमारा आशीर्वाद।
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