अजीजों की मोहब्बत
से भी अब गिला होता है।
औ’ आबे-जमजम में भी
अब जहर मिला होता है।।
गुल कम गुलिस्तां
में कांटे बहुत परेशां बागबां,
सहरा में गुल मोहब्बत
का कहां खिला होता है।
पूजा के नहीं ये
मंदिर-मस्जिद ये गुरूद्वारे,
अब फिरकापरस्ती
फितरतों का किला होता है।
सुहाता नहीं काजल आंख
को आंख फोड़े देती,
दिल से दिल का कहां
इस जहां में सिला होता है।
बेकसों के खूं से
रंगे हाथ किसके नहीं यहां।
आजकल सुबह-शाम बस
यही सिलसिला होता हैा
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