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Tuesday, September 4, 2012

लहर से दूर कूल हो गए




चांद-सूरज, धरती औ’ आकाश सब बबूल हो गए।
टिमटिताते तारे चुभते द़ष्टियों में शूल हो गए।।

फ्रीज हुआ जा रहा कि आदमी बन्‍द गवाक्षों में,
बसंती बेला-चमेली अब प्‍लास्टिकी फूल हो गए।

सर्जक ही संहारक हो कर रहे विश्‍व को आक्रांत,
विज्ञानी-समीकरण हल करते-करते मूल हो गए।

क्रिस्‍टल-कम्‍प्‍यूटर है विकास के बढ़ते चरण मगर-
आदर्श थे जितने सब रेडियोधर्मी धूल हो गए।

धरा से नभ तक सिर उठाए खड़े कि बारूदी-पहाड़,
गगन में शांति के कबूतर उड़ाना फिजूल हो गए।

जुलूस की भाषा बोलते हैं विसंगतियों के पुरोहित,
उजाले की इबारत काटना जिनके उसूल हो गए।

बिसर गए संकल्‍प सभी साथ-साथ अंजुलि भरने के,
डूबते-उतराते रहे, लहर से दूर कूल हो गए।
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