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Tuesday, September 18, 2012

साजिस



ये
जो चीख-चीख कर
धरती से आकाश तक
उछाल रहे हैं
थोथे शब्‍द
यह इनके भीतर की घिन्‍न है
और कुछ नहीं
एक पेट की दूसरे पेट से,
एक आंख की दूसरी आंख से,
साजिश भर है
सूजती आंखों की
मन की आंखों को
अंधा करने की;
अरअसल
ये महंत
एक को अनेक में बांट कर
तुझे-मुझे
बरगला कर
देश के नक्‍शे को
काट कर आरियों से
छीन लेना चाहते हैं
हमारा आजादी का
आकाश।
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