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Thursday, September 13, 2012

नाकारा संदूक


एक बहुत पुराना
काला-कलूटा, नाकारा
लोहे का संदूक
बड़े जतन से संभले रखता हूं
क्‍योंकि
उससे चिपकी है मेरे बचपन की यादें।

मैं महसूस करता हूं
उस
स्‍वर्गीय मां के बूढ़े हाथों के स्‍पर्श
जो
कपड़ों की तहों के नीचे
छुछपाकर रखे पैसों में से
एक पैसा
चुपके से
नन्‍हीं हथेली पर रख
मेरी मुट्ठी स्‍नेह से बंद कर दिया करती थी।

मैं देखता हूं
आज भी
रूपया, चाकलेट या बिस्‍कुल लेने को
मेरा पोता
मेरी कमीज का कोना पकड़े
घूमता है आगे पीछे
मेरे
उस पुराने, नाकारा
संदूक के।
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1 comment:

  1. हम सबके बचपन में ऐसे सन्दूक थे.. जादू के पिटारे...चाभी सदा मान के पास होती थी.
    घुघूती बासूती

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