रिश्ते भी जो किए
हैं हमने तो दर्द से हंसते-हंसते।
गम मिले तो झटक दिए
राह की धूल से चलते-चलते।
पंछी वो हैं हम न
गिला मौसम से न मोह किसी शाख से,
फिजाओं से भी जो
गुजरे हैं हम तो चहकते-चहकते।
भोलापन तो देखिए
हमारा, देख के चांद पानी में,
खिलखिला दिया किए उस
बचपन की तरह मचलते-मचलते।
नजर आता न फर्क
गुबारे-राह और शमशान की राख में-
नहा के आऐ हम मस्त
औलिया – से टहलते-टहलते।
ये सरोवर ये झरने व्यवहार
नहीं करते अब मित्र-सा,
दरिया के किनारे भी
रहते हम तिश्नगी सहते-सहते।
मुहाल दिले-मुराद
यहां लोग कमनजर जो सताइश,
यार ! शहकार रचनाएं भी
रह जाती है छपते-छपते ।
मन की हर गजल असमंज
भरी है यहां पे ‘’यादवेन्द्र’’
अर्थ की यात्रा में
उम्र तमाम हुई यों ही पढ़ते-पढ़ते।
------
No comments:
Post a Comment