कंटकित
हो मुस्कुराती नवल सुमनार्चित प्रशाखा,
हृदय उपवन
में प्रफुल्लित वेदना के हास हो।
प्रगति
प्रांगण में तुम्हीं,
मेरे
अमिट विश्वास हो ।
मधुर
अधरों पर सुशोभित मौन मन की मूक भाषा,
विरल
भावों के श्रृंगारित दिवित आकाश हो।
चन्द्रबाला-सी
उमर नीलाम्बरा मुकुलित कलेवर,
उर गगन
में छिटक बरसाते सुधार विद्यु-हास हो।
प्रगति
प्रांगण में तुम्हीं,
मेरे
अमिट विश्वास हो।
मुक्त
नभ की एक खगमाला, दिवंगत नीड़ हो तुम,
मंदिर
छाया में प्रणय के गीतिमय नि:श्वास हो।
तुम
नवोदित सुमन, मैं गुनगुन-गुनन् की मधुर पुकार,
विश्व-वीणा
पर निनादित स्वरित स्वप्नाकाश हो।
प्रगति
प्रांगण में तुम्हीं,
मेरे
अमिट विश्वास हो।
वाह !आभार !
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