सिर कनपटियों के
सफेद बालों पर लगा
कर खिजाब
करते हैं देखने का
प्रयास
बैसाखियों के उस
पार
दूर छूटे ख्वाब,
बहुत चाहते हैं
झुंठलाना
बोनी दुनिया के
बुढ़ापे को
छू पाना
मगर
संशयों की जुगाली
करते
देखते हैं आगत को,
बंदरी की तरह सीने
से चिपकाए हैं
मृत बच्चे से विगत
को,
मूक-बधिर से बोलने
की छटपटाहट में
कोसते हैं वर्तमान
को,
मोतियाई-दृष्टियां
देख नहीं पाती स्वच्छ
दिनमान को
और
निहारते ही अल्हड़-यौवना
को
असमय
तोड़ते हैं तिलस्मी
रहस्य,
पपड़ाए होठों की
वीरना डयोड़ी पर
ऊंघते शब्द
लड़खड़ाते हैं
ऊँ
शांन्ति...........।
ऊँ
शांन्ति...........।
-------
Superb !
ReplyDelete