आज भी
बहुत कुछ
अनकहा सा बांचता हूं
तुम्हारे नयन में
जब मैं झांकता हूं।
चुक कए क्या
सचमुच वो सभी सन्दर्भ
सब संवेग
जो हमने साथ जिए थे?
माना कि धुंधला गए
हथेलियों पर खिले
मेहंदी के फूल
बीते कल पर
अब आंसू बहाना है
फिजूल।
टीसती तुम्हारे
पांव की फटी बिवाई
की
अनकही पीर
मैं जानता हूं।
टूट कर बिखरते नहीं
आदमी जीवट वाले
जूझते है नियति से
सुख दु:ख के हर
फासले को
नापते हैं पांव की
गति से
धुंध में डूबा
दर्द का हर गांव मैं
पहचानता हूं।
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