दफ्तर जाते, था फूल
सा चेहरा।
लौटे तो, था धूल सा
चेहरा।।
टेबिल से टेबिल तक
मात सही,
प्रारूप की, था भूल
सा चेहरा।
खेल सका न गांठ लगा
फीता,
अफ़सर को, था कब
क़बूल चेहरा?
न लेने में था न
देने में यह
अपना तो था, उसूल
चेहरा।
मुन्शीगिरी से थे
हम अनाड़ी
इसीलिए था फ़ुज़ुल चेहरा।
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