कैसे मुस्काएं, कौन
गीत गाएं?
अनमनी सुबह है, उदास
संध्याएं।।
हृदय का मधुवन, मन
की अमराई,
बदरंग हुई सब, तन की
ऋचाएं ।
गमलों से पढ़ते रहे
हम मधुमास-
औ’ मौसम की पुस्तकी
परिभाषाएं।
गंधायित-सौगातें वो
बिसर गईं,
गन्ध-पांखुरी पर
लिखी कविताएं।
दे डाली सब इच्छाओं
की आहूति,
चुकती जातीं श्वासों
की समिधाएं।
चुक गए सभी सम्मोहनी
सम्बोधन,
अर्थविहीन हो गई
संज्ञाएं।
किस सरिता-जल में
निथर आए हम,
दूषित गंगा-जमुना की
धाराएं।
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