टूटे सपन की
किर्चियां,
है ये शहर की बस्तियां।
बहरा, प्रदूषित शहर
यह,
सुनता न उदास
सिसकियां।
इश्तिहार-सा हर शख्स,
चेहरों पे हैं
तल्खियां।
दिल मिलते नहीं यहां,
मिलती है सिर्फ
हथेलियां।
हाथ में ले घूमते
यहां-
लोग माचिस की
तिलियां।
रेत की हथेली पे धरी -
दफ्तरी कागज की
किश्तियां।
आदमी की अस्मिता है,
उधारी चाय की
पर्चियां।
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