निकल छन्दों की कैद से
गीत
चाहता है नए अर्थ में जीना।
बूड़ी उपमाओं के
अनुसरण का
नहीं चाहता अंकुश
अक्षर
व्याकरण का
अवसरवादी अलंकारित
पंक्तियां
है इनकी कुंठित लय-वीणा।
नहीं मांगता तन
स्वर्ण स्याही का
प्रतीक यह
प्रगीत
संबल हर राही का
शीर्षकों के कोलाहल से
अलग-सा
अपने पानी का स्वनाम नगीना।
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सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई
ReplyDeleteकृपया वर्ड वरिफिकेसन हटा दीजिये