जो कहूं
मेरे मन करोगे , सुनोगे ?
हम जो करते हैं
हम जो कहते हैं
शब्दों के बीज जो बोते हैं
जानते हो कितने घुने होते हैं ?
करनी-कथनी में रहूँ
ऐसा कोई शास्त्र गुनोगे ?
मंची अभिनेतायी भाषण
कहां होते हैं आचरण ?
कुण्ठा ग्रस्त होते हैं कर्म हमारे
खडी करते हैं शंकालू दीवारें।
निर्वसन-तन ढंक दूँ
वह वस्त्र बुनोगे ?
करते हैं बातें नए समाज की
पर रहते हैं छीना झपटी में
कुर्सी व ताज की
उडती रहेगी जब तक
रेत व सूखे पत्ते लिए काली आँधी
बन पाएंगे कैसे
नेहरू, विनोबा ओ' गाँधी ?
हर रोते के आंसू पीलूं
कुण्ठाओं से उन्मुक्त हो,
पिछडे हुए को गले लगाओगे ?
मेरे मन करोगे , सुनोगे ?
हम जो करते हैं
हम जो कहते हैं
शब्दों के बीज जो बोते हैं
जानते हो कितने घुने होते हैं ?
करनी-कथनी में रहूँ
ऐसा कोई शास्त्र गुनोगे ?
मंची अभिनेतायी भाषण
कहां होते हैं आचरण ?
कुण्ठा ग्रस्त होते हैं कर्म हमारे
खडी करते हैं शंकालू दीवारें।
निर्वसन-तन ढंक दूँ
वह वस्त्र बुनोगे ?
करते हैं बातें नए समाज की
पर रहते हैं छीना झपटी में
कुर्सी व ताज की
उडती रहेगी जब तक
रेत व सूखे पत्ते लिए काली आँधी
बन पाएंगे कैसे
नेहरू, विनोबा ओ' गाँधी ?
हर रोते के आंसू पीलूं
कुण्ठाओं से उन्मुक्त हो,
पिछडे हुए को गले लगाओगे ?
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