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रंगीली पुस्तकों के भार से कुछ डगमगाती,
बदली के झीने आंचल से छिपे चांद सी,
मेघों के आंसू से सज्जित दूर्वा सी,
धरती पर नई चांदनी सी,
स्वर भरती थी पथ पर चलते मान के उर तारों पर।
अंजाना पंथी तब एकाएक हृदय का गीत बन गया,
नयन जिसे स्वप्नों में खोजा करते थे,
वह पल भर पुतली में बस
मन का मीत बन गया।
आंखें में थे प्रश्न कि
अब तक कहां रहे तुम,
प्यार भरी प्रिय के लोचन
छलका कर पलकों की प्याली को,
बोले ''हम तो पास तुम्हारे ही थे
जैसे चांद सितारों से है नभ में पास।''
योंहीं यलती रही एक दो क्षण,
आंखों से अधरों से दो दिल की बातें,
किन्तु धडक कर बैठ गए दिल
और मधुरतम मौन युगल उर की सब बातें,
भौंपू के स्वर में डूबी,
तैरी लारी के रूकने में,
फिर चलने में बह-बह गई।
बस क्या आई,
एक बडी बेबसी आ गई,
बस क्या गई,
कि जैसे जीवन की बगिया से जाता मधुर बसंत।
आश्वासन दे गया,
मगर बस का पिछवाडा,
पुन: मिलेंगे.........।
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बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति
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